ग़ज़ल

क्यूँ ये दूरी सही नहीं जातीज़िंदगी हम से जी नहीं जाती बंदगी शौक़-ए-सजदा हद से औरदिल की वारफ़्तगी नहीं जाती याद इक बार उनकी आती हैआँखों से फिर नमी नहीं जाती इतना हसरत-ज़दा हुआ है दिलप्यास दिल की सही नहीं जाती सब पे दरिया-दिली तुम्हारी बसअपनी तिश्ना-लबी नहीं जाती आग...