वादे से इक तुम्हारे मजबूर हो गये
ख़ातिर तुम्हारी तुम से हम दूर हो गये
ख़्वाहिश हमारे दिल की दिल ही में रह गई
अरमाँ-ए-यार आगे मा’ज़ूर हो गये
बर्क़-ए-जमाल-ओ-हुस्न-ए-माशूक़ देखिए
ख़ुर्शीद जाने कितने बे-नूर हो गये
इक आरज़ू-ए-उल्फ़त बदनाम कर गई
वो इश्क़ कर लिये और मशहूर हो गये
उनकी जिरह के आगे मेरी दलील क्या
सारे सुबूत भी ना-मंज़ूर हो गये
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