Ghazal

Published by Dr. Amit Singh

August 13, 2020

तब्दील सहरा में हुए दरिया-ए-उल्फ़त क्यूँ यहाँ
बे-बस जहाँ की आग के आगे मुहब्बत क्यूँ यहाँ

दीवार से दीवार मिलती दर से मिलते आज दर
दीवार-ओ-दर पे फिर रही फिर आज नफ़रत क्यूँ यहाँ

जब है हमारे ही ज़ेहन में हर मसाइल की सुलझ
फिर बीच में आती ज़माने की अदालत क्यूँ यहाँ

क्या एक इंसानी बदन में आज रहती रूह दो
मुस्कान लब पर और दिल में है अदावत क्यूँ यहाँ

क्यूँ दस्त-बस्ता हम खड़े हैं सामने हर झूट के
लब पर हमारे है नहीं आती सदाक़त क्यूँ यहाँ

कमज़ोर हिम्मत है हुई या शान की आदत गई
मज़लूम ख़ातिर अब नहीं होती बग़ावत क्यूँ यहाँ

इक ख़ौफ़ के ही ख़ौफ़ में इंसान अब है जी रहा
है ख़ौफ़ करती फिर रही ऐसी हिमाकत क्यूँ यहाँ

क्या फेर ली आँखें ख़ुदा ने या बला का राज है
नीलाम अस्मत और जिस्मों की तिज़ारत क्यूँ यहाँ

तूफ़ान में आई जो कश्ती लाख वादे कर दिये
साहिल पे आकर फिर मुकरने की है फ़ितरत क्यूँ यहाँ

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