इंसान की नहीं,
यहाँ,
हैसियत की क़दर है
लौट चल गाँव
ये तो
मशीनों का शहर है
इंसान की नहीं,
यहाँ,
हैसियत की क़दर है
लौट चल गाँव
ये तो
मशीनों का शहर है
पौधे और झाड़ियां तो बगिया की शान हैं,
पर फूलों में ही रहती, बगिया की जान है।
ये भूली बिसरी बातें और यादें उस सफ़र की थी
था मुनफ़रिद मैं राह पर, न चाह मुस्तक़र की थी
مختصر کہانی جسکےمختلف جہات
کچھ حسین یادیں ،اک حسین واردات
शहरी जीवन की संवेदनहीनता और यांत्रिक अस्तित्व का यथार्थ चित्रण
बहुत गहरा कहा प्रेम जी