क्षितिज के पार बैठ जाता है
वो
अपने सपने,
सपनों में सजाता है,
दिन भर गुजार लेता है शांत रहे
शाम होते ही
धुन में शोर गुनगुनाता है,
सूरज की ढलती लालिमा को
अंदर उतार लेता है
अपने मन के अंधेरे को वो
………… कुछ इस तरह सँवार लेता है
क्षितिज के पार बैठ जाता है
वो
अपने सपने,
सपनों में सजाता है,
दिन भर गुजार लेता है शांत रहे
शाम होते ही
धुन में शोर गुनगुनाता है,
सूरज की ढलती लालिमा को
अंदर उतार लेता है
अपने मन के अंधेरे को वो
………… कुछ इस तरह सँवार लेता है
पौधे और झाड़ियां तो बगिया की शान हैं,
पर फूलों में ही रहती, बगिया की जान है।
ये भूली बिसरी बातें और यादें उस सफ़र की थी
था मुनफ़रिद मैं राह पर, न चाह मुस्तक़र की थी
مختصر کہانی جسکےمختلف جہات
کچھ حسین یادیں ،اک حسین واردات
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