क्षितिज के पार बैठ जाता है
वो
अपने सपने,
सपनों में सजाता है,
दिन भर गुजार लेता है शांत रहे
शाम होते ही
धुन में शोर गुनगुनाता है,
सूरज की ढलती लालिमा को
अंदर उतार लेता है
अपने मन के अंधेरे को वो
………… कुछ इस तरह सँवार लेता है
क्षितिज के पार बैठ जाता है
वो
अपने सपने,
सपनों में सजाता है,
दिन भर गुजार लेता है शांत रहे
शाम होते ही
धुन में शोर गुनगुनाता है,
सूरज की ढलती लालिमा को
अंदर उतार लेता है
अपने मन के अंधेरे को वो
………… कुछ इस तरह सँवार लेता है
मुझे मेरी उङान ढूँढने दो।
खोई हुई पहचान ढूँढने दो।
महाभारत का युद्ध हो चुका
द्वारका नगरी बस चुकी है
वो तस्वीर देखी है?
जिसमे किसी समंदर किनारे…
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