वो तस्वीर देखी है?
जिसमे किसी समंदर किनारे
एक पुरानी सी बेंच पर
एक वृद्ध जोड़ा बैठा हुआ
उठती गिरती लहरों को देखते
हुए
पंछियों के शोर को सुनते
हुए
भीगी रेत पे पाँव गड़ोये हुए
ताज़ी हवा को कमजोर पड़ती
साँसों में भरते हुए
एक दूसरे को देखकर
मुस्कुराता है
उन आखों में अब शिकवे
शिकायतें नहीं
सिर्फ एक मासूम सुकून दिखाई
देता है
झुर्रियों भरे हाथ एक दूसरे
को थाम कर उठ खड़े होते हैं
और धीमे कदम घोंसले की और चल
देते हैं
मुझे जाननी है तुम्हारे
अंतर्मन की बस एक बात
उस उम्र में, उस शाम को उस
बेंच पर
क्या तुम्हारे साथ मैं हूँ?
जंगल का फूल
पौधे और झाड़ियां तो बगिया की शान हैं,
पर फूलों में ही रहती, बगिया की जान है।
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