महाभारत का युद्ध हो चुका
द्वारका नगरी बस चुकी है
सैकड़ों रमणियों को वर चुके कृष्ण
अब लौट रहे हैं बृज की और
मस्तक में राधा की भोली छवि उभरती है
अश्रुपूरित नयनों से उसी कदम्ब के नीचे बाट जोहती होगी
जहां मैं उसे बिलखता छोड़ आया था
इतने वर्षों के वियोग की क्षमा मांग लूंगा
आलिंगनबद्ध करके सब संताप हर लूँगा
राधे के बिना श्याम भी अधूरे रहे इतने वर्ष
मेरी आँखों मे पढ़ ही लेगी बृजभान किशोरी
यमुना किनारे रथ से उतरते हैं,
पैदल ही चल पड़ते हैं कानन की और
ये क्या दृश्य आंखों को दिखलाई देता है
हर कदम्ब के नीचे राधा है
हर कुंज गली में राधा है
हर ग्वाल-बाल की मईया में
हर बंसीवट की छइयां में
कण-कण में राधा नाम है
राधे के पीछे घनश्याम है
राधा आराध्य है राधा ही ध्यान है
राधा से अब मोहन की पहचान है
कृष्ण चकित हैं, कृष्ण विभोर हैं
नन्दगाम से बरसाने तक बस राधे-राधे चहुँ और है।
Radha krishna poem is excellent. u r superb writer.
It indeed is.Poonam ji is an amazing writer. Thank you for reading.