मैं

Published by Ms Kaur

August 15, 2020

मैं अक्सर
ख़ुद को,
टुकड़ों में रख कर भूल जाती हूँ,

मैं माँ हूँ,

बेटी भी हूँ
पत्नी और बहन में बँटी भी हूँ,

मैं प्रेमिका हूँ,
मैं ख़ुद प्यार हूँ

बस शब्दों में रहती हूँ,
मैं ब्रह्म सी निराकार हूँ……

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1 Comment

  1. Shankar rai

    स्त्री जीवन के विविध आयामों को बहुत खूबसूरती से गहरे शब्दों के साथ व्यक्त किया

    ‘ब्रह्म सी निराकार’

    जैसे कि पानी का जीवन…जहाँ गया,जिसमें गया..उसी सा हो गया

    बहुत सुंदर कौर जी

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