बस मैं चला जाऊंगा,
अब तुम जाओ,
थक जाओगी,
एक टिकट तुम्हारी कटा लूं,
साथ ही चले चलो,
‘नही तुम जाओ’
मैं जा रही वापस(घर)….
चार कदम चलना,
और पीछे मुड़-मुड़ कर देखना,
कैसे भुलाया जायगा उसका मुड़कर देखना,
हर बार यही होता है,
हर बार बिछड़ने का गम,
मिलने की खुशी से जीत जाता है,
पर माँ हर बार सड़क तक छोड़ने आती है,
फिर वापसी में इन सकरी गलियों में कही खो जाती है।
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