हर तलब मेरी वो सुनता देखता है दोस्तो
साथ मेरे हर नफ़स मेरा ख़ुदा है दोस्तो
कुछ भी ता हद्द ए नज़र साबित नज़र आता नहीं
बट गया हूँ मैं कि मंज़र बट गया है दोस्तो
अज़्म भी है ज़ीस्त की लहरें भी हैं बिफरी हुईं
और हाथों में मिरे कच्चा घड़ा है दोस्तो
हर तलब मेरी वो सुनता देखता है दोस्तो
साथ मेरे हर नफ़स मेरा ख़ुदा है दोस्तो
कुछ भी ता हद्द ए नज़र साबित नज़र आता नहीं
बट गया हूँ मैं कि मंज़र बट गया है दोस्तो
अज़्म भी है ज़ीस्त की लहरें भी हैं बिफरी हुईं
और हाथों में मिरे कच्चा घड़ा है दोस्तो
मुझे मेरी उङान ढूँढने दो।
खोई हुई पहचान ढूँढने दो।
महाभारत का युद्ध हो चुका
द्वारका नगरी बस चुकी है
वो तस्वीर देखी है?
जिसमे किसी समंदर किनारे…
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