हर तलब मेरी वो सुनता देखता है दोस्तो
साथ मेरे हर नफ़स मेरा ख़ुदा है दोस्तो
कुछ भी ता हद्द ए नज़र साबित नज़र आता नहीं
बट गया हूँ मैं कि मंज़र बट गया है दोस्तो
अज़्म भी है ज़ीस्त की लहरें भी हैं बिफरी हुईं
और हाथों में मिरे कच्चा घड़ा है दोस्तो
हर तलब मेरी वो सुनता देखता है दोस्तो
साथ मेरे हर नफ़स मेरा ख़ुदा है दोस्तो
कुछ भी ता हद्द ए नज़र साबित नज़र आता नहीं
बट गया हूँ मैं कि मंज़र बट गया है दोस्तो
अज़्म भी है ज़ीस्त की लहरें भी हैं बिफरी हुईं
और हाथों में मिरे कच्चा घड़ा है दोस्तो
पौधे और झाड़ियां तो बगिया की शान हैं,
पर फूलों में ही रहती, बगिया की जान है।
ये भूली बिसरी बातें और यादें उस सफ़र की थी
था मुनफ़रिद मैं राह पर, न चाह मुस्तक़र की थी
مختصر کہانی جسکےمختلف جہات
کچھ حسین یادیں ،اک حسین واردات
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