बगैर तैराकी के जिनकी पीठ थपथपाई गयी
वे उतरे जरूर दरिया में मगर लौटके नही आये
जंगल का फूल
पौधे और झाड़ियां तो बगिया की शान हैं,
पर फूलों में ही रहती, बगिया की जान है।
बगैर तैराकी के जिनकी पीठ थपथपाई गयी
वे उतरे जरूर दरिया में मगर लौटके नही आये
पौधे और झाड़ियां तो बगिया की शान हैं,
पर फूलों में ही रहती, बगिया की जान है।
ये भूली बिसरी बातें और यादें उस सफ़र की थी
था मुनफ़रिद मैं राह पर, न चाह मुस्तक़र की थी
مختصر کہانی جسکےمختلف جہات
کچھ حسین یادیں ،اک حسین واردات
बराज़ साब आपकी ये पंक्तियाँ नीति काव्य परंपरा का विस्तार हैं।
बहुत बड़े और बहुत गहरे जीवन दर्शन को आपने निचोड़ कर दो पंक्तियों मे लिख दिया
मेरी पसंदीदा पंक्तियाँ हैं ये,प्रेरणा देती हैं।