पासे बह के रोणा की
दिल दे ढायां होणा की
इश्क़ समूला चाहीदै
अध्धा की ते पोणा की
नफ़रत वस्से वेहड़े विच
बूहे तेल दा चोणा की
मुड़ मुड़ कीतीयां भुलां नूं
गंगा जा के धोणा की
दिन दे चड़ेयां आज़िम जी
मक्कर मार के सोणा की
पासे बह के रोणा की
दिल दे ढायां होणा की
इश्क़ समूला चाहीदै
अध्धा की ते पोणा की
नफ़रत वस्से वेहड़े विच
बूहे तेल दा चोणा की
मुड़ मुड़ कीतीयां भुलां नूं
गंगा जा के धोणा की
दिन दे चड़ेयां आज़िम जी
मक्कर मार के सोणा की
मुझे मेरी उङान ढूँढने दो।
खोई हुई पहचान ढूँढने दो।
महाभारत का युद्ध हो चुका
द्वारका नगरी बस चुकी है
वो तस्वीर देखी है?
जिसमे किसी समंदर किनारे…
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