पासे बह के रोणा की
दिल दे ढायां होणा की
इश्क़ समूला चाहीदै
अध्धा की ते पोणा की
नफ़रत वस्से वेहड़े विच
बूहे तेल दा चोणा की
मुड़ मुड़ कीतीयां भुलां नूं
गंगा जा के धोणा की
दिन दे चड़ेयां आज़िम जी
मक्कर मार के सोणा की
पासे बह के रोणा की
दिल दे ढायां होणा की
इश्क़ समूला चाहीदै
अध्धा की ते पोणा की
नफ़रत वस्से वेहड़े विच
बूहे तेल दा चोणा की
मुड़ मुड़ कीतीयां भुलां नूं
गंगा जा के धोणा की
दिन दे चड़ेयां आज़िम जी
मक्कर मार के सोणा की
पौधे और झाड़ियां तो बगिया की शान हैं,
पर फूलों में ही रहती, बगिया की जान है।
ये भूली बिसरी बातें और यादें उस सफ़र की थी
था मुनफ़रिद मैं राह पर, न चाह मुस्तक़र की थी
مختصر کہانی جسکےمختلف جہات
کچھ حسین یادیں ،اک حسین واردات
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