लिखूँ तो किस ज़माने की बात लिखूँ आज?
जो बीत गया वो, या वो जो गुज़रता ही नहीं
अपना आज लिखूँ, या परसों का परायापन
या पराया कल जो, अपना सा लगता ही नहीं
लिख जाऊँ क्या किस्सा, वो दौर-ए-फ़ज़्ल का
या लिख दूँ वो वक्त, कभी जो सँवरता ही नहीं
बख़्श-ए-फ़ज़ा लिख दूँ, या बीती सज़ा कोई
या लिखूँ लम्हे-अज़ा, जो दर-गुज़रता ही नहीं
दिल में आती हर एक बात को लिख डालूँ या
इंतज़ार करुँ ख़याल, जो ज़ेहन उतरता ही नहीं
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