मैं लिखता हूँ प्रेम
काल्पनिक प्रेम
जिसे ना मैंने कभी पाया
ना कभी अनुभव किया
ना कभी देखा
ना कभी जिया
सिर्फ़ लिखा औऱ लिखता गया
सिर्फ़ एक कल्पना है, मेरा प्रेम
काल्पनिक प्रेम
मैं लिखता हूँ प्रेम
काल्पनिक प्रेम
जिसे ना मैंने कभी पाया
ना कभी अनुभव किया
ना कभी देखा
ना कभी जिया
सिर्फ़ लिखा औऱ लिखता गया
सिर्फ़ एक कल्पना है, मेरा प्रेम
काल्पनिक प्रेम
पौधे और झाड़ियां तो बगिया की शान हैं,
पर फूलों में ही रहती, बगिया की जान है।
ये भूली बिसरी बातें और यादें उस सफ़र की थी
था मुनफ़रिद मैं राह पर, न चाह मुस्तक़र की थी
مختصر کہانی جسکےمختلف جہات
کچھ حسین یادیں ،اک حسین واردات
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