मैं लिखता हूँ प्रेम
काल्पनिक प्रेम
जिसे ना मैंने कभी पाया
ना कभी अनुभव किया
ना कभी देखा
ना कभी जिया
सिर्फ़ लिखा औऱ लिखता गया
सिर्फ़ एक कल्पना है, मेरा प्रेम
काल्पनिक प्रेम
मैं लिखता हूँ प्रेम
काल्पनिक प्रेम
जिसे ना मैंने कभी पाया
ना कभी अनुभव किया
ना कभी देखा
ना कभी जिया
सिर्फ़ लिखा औऱ लिखता गया
सिर्फ़ एक कल्पना है, मेरा प्रेम
काल्पनिक प्रेम
मुझे मेरी उङान ढूँढने दो।
खोई हुई पहचान ढूँढने दो।
महाभारत का युद्ध हो चुका
द्वारका नगरी बस चुकी है
वो तस्वीर देखी है?
जिसमे किसी समंदर किनारे…
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