शर्म से निकले बगैर
औरत घर से नही निकल सकती
जरूरी नही चाँद को सभी अदब से देखें
कुछ आँखें घूरने के लिये होती है
नश्तर की चुभन से यूँ ही नही निकला जायेगा
बहुत जरूरी है अब
बख़्तरबंद के बिना
आग उगलती आँखों में
शालीन मौन के साथ
बेखौफ घर से निकलना
हर हाल में दो दो हाथ वास्ते
नारी
मुझे मेरी उङान ढूँढने दो।
खोई हुई पहचान ढूँढने दो।
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