किताब

क्यों नमैं और तुम, एक किताब लिखें! ज़िन्दगी के लेखों काथोड़ा हिसाब लिखें, जिसमें, भूतों से भयानक कर्ज़ों का ज़िक्र हो,बूढ़े बाप की पेशानियों परबच्चों की फ़िक्र हो, तपती सी ज़िन्दगी मेंदो शीतल पल प्यार के हों, कुछ एक पन्ने तोसहेलियोंऔर यार के हों, जो बिछड़ गए हैं,उनका...

तैराकी

बगैर तैराकी के जिनकी पीठ थपथपाई गयीवे उतरे जरूर दरिया में मगर लौटके नही आये

औरत

शर्म से निकले बगैरऔरत घर से नही निकल सकतीजरूरी नही चाँद को सभी अदब से देखेंकुछ आँखें घूरने के लिये होती हैनश्तर की चुभन से यूँ ही नही निकला जायेगाबहुत जरूरी है अबबख़्तरबंद के बिनाआग उगलती आँखों मेंशालीन मौन के साथबेखौफ घर से निकलनाहर हाल में दो दो हाथ...

शहर

इंसान की नहीं,यहाँ,हैसियत की क़दर है लौट चल गाँव ये तोमशीनों का शहर है

मैं

मैं अक्सरख़ुद को,टुकड़ों में रख कर भूल जाती हूँ, मैं माँ हूँ, बेटी भी हूँपत्नी और बहन में बँटी भी हूँ, मैं प्रेमिका हूँ,मैं ख़ुद प्यार हूँ बस शब्दों में रहती हूँ,मैं ब्रह्म सी निराकार...