ख़ूबसूरत मोड़

ये भूली बिसरी बातें और यादें उस सफ़र की थीथा मुनफ़रिद मैं राह पर, न चाह मुस्तक़र की थीन ख़ौफ़ कोई रात का, न आरज़ू सहर की थीन धूप से कोई थकन, न जुस्तजू शजर की थीन पास रहनुमा मिरे, न कोई मुन्तख़ब डगरसुकूत से था मुतम’इन, कमी ज़रूर थी मगरदिखी मुझे वो अजनबी, वो भीड़ से...

نظم

مختصر کہانی جسکےمختلف جہاتکچھ حسین یادیں ،اک حسین وارداتجام بزم میں نہ تھا ،نجات غم کی راتذکر میں ممات اور تھی فکر میں حیاتدور دیکھا اک جمال لاکھوں تھے صفاتاسکی تھی مری طرف نگاہ التفاتحسن تھا بعید وہم ،دل کو کر دے ماتآنکھوں آنکھوں نے کی ایک دوسرے سے باتتلخ سی فضا کو...

नज़्म

मुख़्तसर कहानी जिसके मुख़्तलिफ़ जिहात कुछ हसीन यादें, इक हसीन वारदात जाम बज़्म में न था, नजात-ए-ग़म की रात ज़िक्र में ममात और थी फ़िक्र में हयात दूर देखा इक जमाल, लाखों थे सिफ़ात उसकी थी मिरी तरफ़ निगाह-ए-इल्तिफ़ात हुस्न था बईद-ए-वहम, दिल को कर दे मात आखों आखों ने की...

ग़ज़ल

क्यूँ ये दूरी सही नहीं जातीज़िंदगी हम से जी नहीं जाती बंदगी शौक़-ए-सजदा हद से औरदिल की वारफ़्तगी नहीं जाती याद इक बार उनकी आती हैआँखों से फिर नमी नहीं जाती इतना हसरत-ज़दा हुआ है दिलप्यास दिल की सही नहीं जाती सब पे दरिया-दिली तुम्हारी बसअपनी तिश्ना-लबी नहीं जाती आग...

यादें

आया वो याद हम को बोसा क़ज़ा से पहलेलम्हे नवाज़िशों के जैसे सज़ा से पहले आया न बाज़ आदम क्यों हर ख़ता से पहलेतू कर सवाल ये अब वाइज़ ख़ुदा से पहले अंदाज़-ए-इश्क़ उनका देखो तो क्या अजब थाकरते रहे जफ़ा वो हर इक वफ़ा से पहले जब निकहत-ए-सबा का पूछा सबब तो बोलीगुल पुर-शमीम था इक...

रूहानियत

क्यूँ धीरे धीरे मुझे दिल पे कम यकीं हो चला हैक्यूँ  रफ़्ता रफ़्ता जो महमान था मकीं हो चला हैन आरज़ू, न तमन्ना, न दिल में कोई भी हसरतयूँ मुतमइन हो के दिल तेरे और करीं हो चला हैजुनून इश्क़ का इस तरह से शदीद हुआ अब    कि बद-दुआ’ भी ज़ुबा से यूँ...