अनन्त

जो परिभाषित नहीं हो सकता वही अनन्त है फ़िर प्रेम हो …………या ईश्वर

प्रेम

समर्पण, त्यागकरुणा, स्वतन्त्रताअनुराग……ह्र्दय की ये सभी भावनायेंजिस किसी भी व्यक्ति के प्रतिहम समर्पित कर दे,,,,,यही प्रेम है…… प्रेम करना कर्तव्य है,,,प्रेम पाना...

काल्पनिक प्रेम

मैं लिखता हूँ प्रेमकाल्पनिक प्रेम जिसे ना मैंने कभी पायाना कभी अनुभव कियाना कभी देखाना कभी जियासिर्फ़ लिखा औऱ लिखता गया सिर्फ़ एक कल्पना है, मेरा प्रेमकाल्पनिक...