तू फूल की रस्सी न बुन

आवाज़ को ,आवाज़ देये मौन-व्रत ,अच्छा नहीं। जलते हैं घरजलते नगरजलने लगे,चिड़यों के पर,तू ख्वाब मेंडूबा रहातेरी नज़र ,थी बेख़बर। आँख़ों के ख़त,पर नींद कायह दस्तख़त ,अच्छा नहीं। जिस पेड़ कोखाते हैं घुनउस पेड़ की ,आवाज़ सुन,उसके तलेबैठे हुएतू फूल की ,रस्सी न बुन। जर्जर...

उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से

जितनी दूर नयन से सपनाजितनी दूर अधर से हँसनाबिछुए जितनी दूर कुँआरे पाँव सेउतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से हर पुरवा का झोंका तेरा घुँघरूहर बादल की रिमझिम तेरी भावनाहर सावन की बूंद तुम्हारी ही व्यथाहर कोयल की कूक तुम्हारी कल्पना जितनी दूर ख़ुशी हर ग़म सेजितनी दूर साज सरगम...

नदी बोली समंदर से

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ।मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही-ही रुबाई हूँ॥नदी बोली समन्दर से…. मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया;लहर होते हुये भी तो मेरा आँचल न लहराया;मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया।बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती...