तैराकी

बगैर तैराकी के जिनकी पीठ थपथपाई गयीवे उतरे जरूर दरिया में मगर लौटके नही आये

औरत

शर्म से निकले बगैरऔरत घर से नही निकल सकतीजरूरी नही चाँद को सभी अदब से देखेंकुछ आँखें घूरने के लिये होती हैनश्तर की चुभन से यूँ ही नही निकला जायेगाबहुत जरूरी है अबबख़्तरबंद के बिनाआग उगलती आँखों मेंशालीन मौन के साथबेखौफ घर से निकलनाहर हाल में दो दो हाथ...

…खेमेबाजियाँ साफ़ कहती है

खेमेबाजियाँ साफ़ कहती हैयहाँ कोई खुदा नही रहता रूह की बात पे गर सब चलतेकोई मजहब जुदा नही रहता किसी को छोटा करके ‘बराज’दुनिया में कोई बड़ा नही...