उदासी

यहाँ से जाने से पूर्वएक बारभिक्षापात्र लेकरहर चौखट पर जाऊँगासबसे, उनकी उदासियां मांगने.. चाहता हूं मेरी कविताओं के अतिरिक्तसंसार मेंकुछ भी उदास न...

ख़ामोशी

मैं मरूंगादम घुटने सेमेरे गले परउन सारे शब्दों के निशान होंगे जिन्हें मैं कह नही पाया…

समुद्र और पर्वत

मैने समुद्र नही देखा..लोगों का भरा हुआ मन देखा है मैने कोई पर्वत नहीं देखा..दुःख से पत्थर हुए लोगों को देखा है.. और मन कहता है बार-बार.. समुद्र और भरा हुआ मनपर्वत और पत्थर बन चुके लोग…… एक जैसे होते हैं न...

घर

जिन्दगी की डोलीबस, सफर में रहती है कुछ बेटियांब्याह दी जाती हैं, इतनी दूर बाप का चौखट छूटता है जबसे’घर’ नसीब नही...

कहाँ जाऊंगा…

कभी जो, छूट गया ये साथ..कहाँ जाऊंगाकभी जो, कह न पाया बात..कहाँ जाऊंगा ये रात ही तो है..मेरे दुःख सुनती है..ढांढस बँधाती है कभी जो थक गई ये रात…कहाँ...