by Baraj | Aug 15, 2020 | Baraaj, Hindi, Poetry
बगैर तैराकी के जिनकी पीठ थपथपाई गयीवे उतरे जरूर दरिया में मगर लौटके नही आये
by Baraj | Aug 15, 2020 | Baraaj, Hindi, Poetry
शर्म से निकले बगैरऔरत घर से नही निकल सकतीजरूरी नही चाँद को सभी अदब से देखेंकुछ आँखें घूरने के लिये होती हैनश्तर की चुभन से यूँ ही नही निकला जायेगाबहुत जरूरी है अबबख़्तरबंद के बिनाआग उगलती आँखों मेंशालीन मौन के साथबेखौफ घर से निकलनाहर हाल में दो दो हाथ...
by Baraj | Aug 15, 2020 | Baraaj, Hindi
खेमेबाजियाँ साफ़ कहती हैयहाँ कोई खुदा नही रहता रूह की बात पे गर सब चलतेकोई मजहब जुदा नही रहता किसी को छोटा करके ‘बराज’दुनिया में कोई बड़ा नही...